सोचिए, आप सब्ज़ी मंडी में जाते हैं। एक दुकान पर टमाटर 100 रुपये किलो है, और दूसरी दुकान वाला वही टमाटर 60 रुपये में दे रहा है। अब आप किससे खरीदेंगे? सीधा सा जवाब है—जहाँ सस्ता है। यही तर्क है भारत की रूस से तेल खरीद का।
लेकिन सवाल ये है कि ये वाकई भारत की स्मार्ट चॉइस है, या फिर एक मजबूरी, जिससे हम बच नहीं सकते?
रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद का तेल समीकरण
2022 में रूस-यूक्रेन युद्ध छिड़ते ही दुनिया का पूरा तेल बाज़ार हिल गया। अमेरिका और यूरोप ने रूस पर सख्त प्रतिबंध लगा दिए। कई देशों ने रूसी तेल से हाथ खींच लिया। लेकिन भारत ने वहीं सोचा—“भाई, सस्ता तेल मिल रहा है, तो क्यों छोड़ा जाए?”
इसे कहते हैं मौके पर चौका मारना।

भारत की ऊर्जा भूख
भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल उपभोक्ता है, लेकिन अपनी ज़रूरत का 80% तेल बाहर से खरीदता है। यानी, घर का LPG सिलेंडर, गाड़ी का पेट्रोल, सबका रिश्ता आयात से जुड़ा है।
अब ऐसी स्थिति में अगर रूस से सस्ता तेल मिलता है, तो क्या ये सिर्फ चॉइस है? नहीं, ये ज़रूरत भी है।
स्मार्ट चॉइस क्यों है रूस से तेल खरीद?
- जेब पर सीधी बचत – रूस से मिलने वाला discounted crude oil भारत की अर्थव्यवस्था को बड़ा सहारा देता है।
- डॉलर पर कम निर्भरता – रुपए-रूबल ट्रेड से डॉलर का दबाव थोड़ा कम होता है।
- दोस्ताना संतुलन – भारत रूस से खरीद भी रहा है और अमेरिका-यूरोप से रिश्ते भी बिगाड़ नहीं रहा।
ये वही रणनीति है, जैसे पड़ोस के दोनों पड़ोसियों से दोस्ती रखना—ताकि किसी भी वक्त काम आ जाए।
मजबूरी भी कम नहीं है
भारत चाहे या न चाहे, कुछ वजहें इसे मजबूरी बनाती हैं:
- मिडिल ईस्ट का तेल महंगा है।
- क्लीन एनर्जी पर काम जारी है, लेकिन अभी शुरुआती दौर में है।
- घरेलू उत्पादन बहुत कम है।
- और हां, पश्चिमी देशों का दबाव हमेशा बना रहता है।
यानी ये भी नहीं कहा जा सकता कि भारत के पास बहुत सारे विकल्प हैं।
दुनिया की आलोचना, भारत का जवाब
अमेरिका और यूरोप कहते हैं कि भारत रूस की मदद कर रहा है। लेकिन भारत का जवाब साफ है—“हमें अपने लोगों के लिए ऊर्जा चाहिए। अगर हमें सस्ता तेल मिल रहा है, तो हम लेंगे।”
आखिरकार, ये वही बात है जैसे सब्ज़ी वाला दोने हाथ फैलाकर कहे—“100 रुपये किलो,” और दूसरी दुकान वाला बोले—“60 रुपये में ले लो।” अब समझदारी किसमें है?
आगे का रास्ता
भारत अब धीरे-धीरे सौर ऊर्जा, हाइड्रोजन और इलेक्ट्रिक वाहनों की तरफ बढ़ रहा है। भविष्य क्लीन एनर्जी का है। लेकिन तब तक, India oil import from Russia हकीकत है, जिसे नज़रअंदाज़ करना मुश्किल है।
निष्कर्ष: दोनों का मेल
तो क्या ये भारत रूस तेल खरीद स्मार्ट चॉइस है या मजबूरी? सच ये है—ये दोनों का मिश्रण है।
- स्मार्ट चॉइस क्योंकि इससे पैसा बच रहा है।
- मजबूरी क्योंकि हमारे पास विकल्प सीमित हैं।
जैसे कोई स्टूडेंट कहे—“थोड़ा पढ़ा भी था, और किस्मत भी काम कर गई।” भारत भी यही कर रहा है—रणनीति और मजबूरी का कॉम्बिनेशन।